संत-साधक भजनमाला

जय गुरु महाराज!

पुस्तकीय

(राग-ताल परिचय सहित विभिन्न संत-महात्माओं एवं भक्त कवियों के 211 गेय दुर्लभ भजनों का अनुपम एवं अनूठा संकलन)

उद्गार

श्रीसद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के मुखारविन्द से गेय दुर्लभ भजन के निम्नलिखित पंक्तियाँ -
बाजे एक तार सुनब दिन रतिया।
अविगत तार अलख गति गावे,
सुनत सुनत शीतल भई छतिया।।
-संत कबीर साहब
(स्थान - चम्पानगर ड्योढ़ी, पूर्णियाँ में आयोजित सत्संग के सुअवसर पर) 

संकलनकर्ता सह रचयिता

इन्द्रदेव लाल दास
‘गुरुकृपा भवन’, उत्तर गली नं0 3
प्रोफेसर कॉलोनी रामबाग, पूर्णियाँ
मोबाईल नं0-7870507829 

Email -indradeolaldas@gmail.com

आशीर्वचन / शुभकामना / प्राक्कथन 

आशीर्वचन


सम्माननीय श्रीइन्द्रदेव लाल दास जी संतमत के एक अच्छे साधक एवं कवि भी हैं। इन्होंने कुछ संतों, साधकों एवं कुछ अपनी बनायी गयी वाणियों का संकलन कर ‘संत-साधक भजनमाला’ नामक पुस्तक तैयार किया है। इसके कुछ अंशों को मैंने देखा। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के अध्ययन-मनन करने से अवश्य ही पाठकों को आध्यात्मिक लाभ मिलेगा।

मैं आराध्यदेव श्रीसद्गुरु महाराजजी से प्रार्थना करता हूँ कि यह पुस्तक लोकप्रिय हो और संकलनकर्ता का संसार में यश फैले। शुभाकांक्षी
महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट,
भागलपुर-3, बिहार (भारत)




आशीर्वचन 

‘संत-साधक भजनमाला’ पुस्तक के प्रणेता परम आदरणीय बाबू श्रीइन्द्रदेव लाल दासजी संतमत के एक प्रेमी समर्पित संतमत के साधक हैं। भक्तिभाव में डूबा हुआ इनका मन बरबस संगीत लहरी में फूट पड़ा है। ये राग-ताल के भी मर्मज्ञ हैं। इस प्रकार इस रचना में इन्होंने राग-ताल को भी सम्यक रूप से अंकित कर दिया है। प्रेमी भक्तों को यह पुस्तक प्रेरणा प्रदान करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। विभिन्न संतों की सुन्दर ज्ञानप्रद रचनाएँ मनमोहक हैं।
परमात्मरूपी गुरुदेव से प्रार्थना है कि इनमें इस प्रकार भक्ति-संबंधी प्रेरणा प्रदान करें, ताकि संत-साहित्य और भी समृद्ध हो सके और इनकी कीर्ति संसार में फैले। शुभकामना के साथ।
शुभाकांक्षी
महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट,
भागलपुर-3, बिहार (भारत)




शुभकामना

पूर्णियाँ नगर निवासी आदरणीय बाबू श्रीइन्द्रदेव लाल दासजी संतमत-सत्संग के सच्चे अनुयायी हैं। ये बड़े ही सरल, नम्र, मिलनसार और सद्गृहस्थ भक्त हैं। ये कवि और संतवाणी के अच्छे गायक भी हैं। इन्हें संगीतशास्त्र का भी ज्ञान है। संतमत-सत्संग का जहाँ भी ध्यान-शिविर लगता है, वहाँ ये उसमें अवश्य भाग लेते हैं। जहाँ कमल खिलता है, वहाँ भौंरा मकरन्द-पान के लिए पहुँच जाता है। इसी प्रकार आप भी जहाँ संत- महात्माओं का सत्संग होता है, वहाँ पहुँच जाते हैं और संतों के दर्शन तथा प्रवचन का लाभ उठाते हैं। आपके परिवार के सभी सदस्य भी संतमत के सत्संगी हैं। आपने अपने पिता स्व0 बलदेवनारायण लाल दास जी से काव्य-प्रतिभा पायी है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शान्ति देवी भी एकनिष्ठ गुरु-भक्तिन और कवयित्री हैं।
‘संत-साधक-भजनमाला’ के संकलनकर्ता भक्त श्रीइन्द्रदेव लाल दासजी ने यह पुस्तक प्रकाशित कराकर धर्मप्रेमियों का बड़ा उपकार किया है। इस संकलन में मध्यकालीन, आधुनिक और वर्तमान काल के संत-साधकों के 211 भक्ति-पदों का संकलन है। इसमें कुछ पद हिन्दी के, कुछ सधुक्कड़ी भाषा के, कुछ अंगिका भाषा के, कुछ मैथिली भाषा के, कुछ मारवाड़ी भाषा के, कुछ गुजराती भाषा के और कुछ उर्दू भाषा के संकलित किये गये हैं। ये सब-के-सब बड़े ही प्रसिद्ध, सरस, गेय और भक्ति-भावना बढ़ानेवाले हैं। संकलनकर्ता ने प्रत्येक पद के ऊपर राग एवं ताल का भी उल्लेख किया है।
पुस्तक चार अध्यायों में विभक्त है। पहले अध्याय में रागों का और दूसरे अध्याय में तालों का परिचय दिया गया है। तीसरे अध्याय में संतमत-सत्संग की स्तुति-विनती, संतमत-सिद्धांत, संतमत-परिभाषा, गुरु-कीर्तन तथा आरती के पद संकलित हैं। चतुर्थ अध्याय में संत-साधकों के पदों को स्थान दिया गया है। इस चौथे अध्याय में संकलनकर्ता के भी कुछ पद आ गये हैं।
ऐसी उपयोगी पुस्तक का संपादन करने के लिए सम्पादक को धन्यवाद है। इस पुस्तक से उनका यश बढ़ेगा-ऐसा मेरा विश्वास है।



शुभकामना

भक्तों के हृदय से प्रेम की धारा फूटती रहती है। अमृतमय यह धारा भावों में भरी संगीत की स्वर-लहरी में झंकृत होती है। इसके अनुशीलन से बरबस मन भगवद्चिंतन में निमग्न हो जाता है। इसी चिंतन के क्रम में माननीय श्रीइन्द्रदेव लाल दासजी ने ‘संत-साधक भजनमाला’ का संकलन किया है। ये स्वयं संगीत के मर्मज्ञ एवं अतिशय प्रेमी उदार हृदय के व्यक्ति हैं। इस पुस्तिका में इन्होंने संगीत के स्वरों में भजन को एवं राग-ताल के साथ अभिव्यक्त करने का स्तुत्य प्रयास किया है।
इससे गायक को विभिन्न रागों के गायन एवं वादन में भरपूर मदद मिलेगी। स्वरों और रागों से भरपूर यह पुस्तक भक्तों के लिए प्रेरणा का श्रोत बने, इसकी कामना परमाराध्य गुरुदेव से करता हूँ। साथ ही प्रणेता से और भी इसी तरह की पुस्तकों के प्रकाशन कर साधकों को संबल देने की शुभकामना करता हूँ। जय गुरु!
शुभाकांक्षी


संकलनकर्ता का परिचय 

मैं संकलनकर्ता बाबू श्रीइन्द्रदेव लाल दास एवं इनके परिवार को अच्छी तरह जानता हूँ। ये एक जमींदार परिवार के सदस्य हैं तथा संतमत के सच्चे अनुयायी हैं, जो स्वभाव से बहुत अच्छे हैं। ये जमींदार परिवार के सदस्य होने के फलस्वरूप इन्हें तनिक भी जमींदार होने का गर्व नहीं है। इन्हें संगीतशास्त्र का अच्छा ज्ञान रहने के कारण ये संतवाणी के अच्छे गायक हैं। संतवाणी एवं स्वरचित भजनों को राग-रागिनी एवं ताल में निबद्ध कर अच्छा गाते हैं। ध्यान-साधना एवं सत्संग में इनकी विशेष अभिरुचि रहती है। इनको महर्षि मेँहीँ आश्रम कुप्पाघाट सर्वप्रिय स्थान है। जहाँ-जहाँ संत-महात्माओं का सत्संग-ध्यान होता है, वहाँ पहुँचकर आप संतों के दर्शन एवं प्रवचन से लाभ उठाते हैं।
संकलनकर्ता का जन्म सुपौल जिला के राघोपुर थाना अंतर्गत फुलकाही गाँव के एक सुप्रसिद्ध जमींदार परिवार में शारदीय नवरात्र की चतुर्थी-पूजा के दिन स्व0 बलदेव नारायण लाल दास के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ है। इनके दादाजी स्व0 लक्ष्मीनारायण लाल दास को 16 (सोलह) गाँवों (मौजों) के तहसील की जमींदारी थी, जिससे इनका जिले भर में तूती बोलती थी। इनके पिता स्व0 बलदेव नारायण लाल दास एक अच्छे स्वतंत्रता सेनानी थे, जो स्वतंत्रता आंदोलन में थाना को लूटने में सक्रिय भाग लिये थे। उसके बाद इन्होंने सरपंच एवं मुखिया के पद पर कई दशकों तक रहकर जनता की अच्छी सेवा की। इनके पिताजी बचपन से ही वैष्णव होने के कारण पहले एक रामानंदी सम्प्रदाय के साधु से दीक्षा लिये, मगर कुछ ही दिनों के बाद संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज से दीखा लेकर ध्यान-सत्संग में जुट गये। इन्हें भजन का पद बनाकर उसे विषय-कीर्तन में गाना बहुत अच्छा लगता था।
संकलनकर्ता गणपतगंज (सुपौल) हाई स्कूल में पढ़ते समय सन् 1966 ई0 में प्रारंभिक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा बिहार के सुप्रसिद्ध पंचगछिया ड्योढ़ी के गायक पंडित बटुक झा एवं अपने चाचा स्व0 विशेश्वर नारायण दास (जो पंचगछिया ड्योढ़ी के प्रसिद्ध गायक पं0 रघु झा एवं पं0 माँगैन जी के शिष्य थे) से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण किये। इनके स्व0 चाचा विशेश्वर नारायण दास शास्त्रीय, सुगम संगीत एवं अन्य संगीत के एक अच्छे कलाकार थे, जो मात्र हारमोनियम वादन से संगीत क्षेत्र में भी उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त किये थे।
संकलन कर्ता ने कई बार आकाशवाणी, पटना में (1976 ई0) भजन गाया, मगर आपको नोजल पॉलिपस होने के कारण आपका स्वर विकृत हो गया और संगीत से आपका मन उचट गया। सेवानिवृत्त के बाद इन्होंने शास्त्रीय संगीत (गायन) में उच्च शिक्षा प्राप्त किया है।
आप दुग्धाधारी वैष्णव होने के कारण 1966 ई0 में ही संतमत की दीक्षा परमाराध्य श्रीसद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज से प्राप्त कर ध्यान साधना में जुट गये और नादानुसंधान की दीक्षा 2015 ई0 में आप प्राप्त किये।
आप राजस्व एवं भूमि-सुधार विभाग में राजस्व कर्मचारी, अंचल निरीक्षक का कार्य कर अंचल अधिकारी के वेतनमान पर दिनांक 31-01-2011 ई0 को सेवानिवृत्त होकर अपना पूर्ण समय सत्संग, ध्यान, भजन के पद का सृजन करने एवं स्वाध्याय में लगाते हैं। इन्हें दो लड़के, एक लड़की है। दोनों लड़के एवं दामाद-तीनों इंजीनियर के रूप में सरकारी सेवा में हैं। इनकी धर्मपत्नी स्नेहप्रभा देवी ‘शान्ति’ एकनिष्ठ गुरुभक्तिन और कवयित्री हैं।
आप करीब चालीस वर्षों से पूर्णियाँ में पदस्थापित होने के कारण शहर-स्थित प्रोफेसर कॉलोनी, रामबाग में आप ‘गुरुकृपा भवन’ नामक मकान बनाकर परिवार सहित रह रहे हैं। डॉ0 अवधेश कुमार विश्वास प्रोफेसर कॉलोनी रामबाग, पूर्णियाँ द्वारा विगत कई वर्षों से अपराह्णकालीन संतमत-सत्संग का आयोजन संकलनकर्ता के बगल में होते आया है। जिनके अनुकरण में सद्गुरु महाराज की असीम अनुकम्पा से संकलनकर्ता विगत पाँच वर्षों से अपने मकान में प्रत्येक रविवार को प्रातःकालीन सत्संग एवं ध्यान का आयोजन करवाते आ रहे हैं, जिसमें समय-समय पर महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट, भागलपुर से संत-महात्माओं का पदार्पण करवाकर सत्संग-ध्यान में संतमत-सत्संगी को सुदृढ़ करने का प्रयत्न करते हैं। संकलित 211 गेय भजनों का संग्रह बहुत ही सुंदर गेय, ज्ञानप्रद और रोचक है, जिससे लोगों को बहुत लाभ होगा।
इनका सोच, इनका व्यवहार, इनकी विन्रमता, इनकी सरलता, इनकी कर्मठता के लिए मैं इन्हें धन्यवाद देता हूँ। मैं गुरुदेव से इनके स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन के लिए प्रार्थना करता हूँ।

डॉ0 स्वामी गुरु प्रसाद
एम-ए- (द्वय), पीएच-डी-
सम्पादक एवं प्रकाशक, ‘शान्ति-सन्देश’


प्राक्कथन

आज हर व्यक्ति तनावग्रस्त होने के कारण अध्यात्म की ओर झुक रहा है। भजन रूपी अँगुली से अपने अंतर्मन के तारों को झंकृत कर तनावमुक्त होना चाहता है।
भजन सहजरूप से मानव मन को परमात्मा से जोड़ने के लिए जीवन के सुख-दुःख में धूप-छाँवरूपी बहते झरने के रूप में जोड़ती है। संत-महापुरुष के जीवन का एकमात्र मूल आधार संतवाणी है। इसी परिप्रेक्ष्य में ब्रह्मलीन श्रीसद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की असीम अनुकम्पा से पूज्यपाद स्वामी छोटेलाल बाबा द्वारा दिये गये प्रेरणानुसार मन में पद-संग्रह करने की प्रेरणा जगी एवं पूज्यपाद स्वामी स्वरूपानंद बाबा ने प्रसन्नतापूर्वक भजन को शास्त्रीय संगीत (राग-रागिनी) में निबद्ध करने हेतु प्रोत्साहित किया। संगीत में प्रेम रखनेवाले कई सत्संगीगण एवं आश्रमवासियों ने भी भजन को संगीत में निबद्ध करने हेतु आग्रह किया, जिसके लिए मैं उन सभी लोगों का आभारी हूँ। पूर्वप्रकाशित गो0 तुलसीदास, स्वामी ब्रह्मानंद एवं अन्य द्वारा रचित भजनमाला के भजन के ऊपर में राग-रागिनी का नाम सहित ताल अंकित किये गये हैं। मगर उस राग में कौन-कौन स्वर किस तरह लगाये जाते हैं। साथ ही, उक्त वर्णित ताल कितनी मात्र का होता है, उसका बोल क्या है तथा ताली-खाली किस मात्र पर है, उसमें जानकारी नहीं दी गयी, जिससे वर्णित राग-रागिनी को हारमोनियम पर गाना-बजाना संभव नहीं है।
इसी परिप्रेक्ष्य में मैं विभिन्न संतों के कुल दौ सौ ग्यारह भजनों का संग्रह कर उनका राग-परिचय सहित ताल-परिचय क्रमश: अध्याय 1 एवं अध्याय 2 में, भजन गायकों एवं सत्संगियों की सेवा में यह भजनामाला समर्पित कर रहा हूँ। वैसे तो बिना स्वरलिपि का भजन गाना आसान नहीं है, फिर भी राग एवं ताल का ज्ञान हेतु पुस्तक के प्रारंभिक अध्याय एक एवं दो में कुछ रागों एवं तालों का वर्णन किया गया है, जिसे मनन कर राग एवं ताल का ज्ञान हो सकता है। अगर श्री सद्गुरु महाराज की कृपा रही तो मैं अगले संस्करण में भजनों की स्वरलिपि सहित पुस्तक प्रकाशित करना चाहूँगा। क्योंकि भजनों की स्वरलिपि तैयार करने में समय अधिक लगेगा। कहावत है-साँस की आस क्या! इसलिए जल्दी में जो हो सका, उसे संगृहीत कर उसमें संगीत का रूप देना चाहा। वैसे तो मैं उतना साहित्य एवं संगीत का जानकार व्यक्ति नहीं हूँ। इसीलिए इसमें जो भी त्रुटि हुई होगी, उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। कृपया पाठक उसे सुधारकर पढ़ने का कष्ट करेंगे। जयगुरु!

एक अति दीन सेवक-इन्द्रदेव लाल दास

भजन-सूची

जय गुरु!

क्रमविषय-वस्तु / संत-महात्मापद संख्या
[01]महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की वाणी01-52
[02]संत कबीर साहब53-73
[03]संत रैदास74
[04]धनी धर्मदासजी महाराज75-79
[05]गुरु नानक साहब80-87
[06]संत दादू दयाल88
[07]संत चरणदासजी89-91
[08]भक्तिन सहजोबाई92-94
[09]संत दरिया साहब (बिहारी)95
[10]संत दरिया साहब (मारवाड़ी)96
[11]संत बाबा धरणी दास 97
[12]संत जगजीवन साहब98
[13]संत पलटू साहब99-101
[14]संत दूलन दास102
[15]संत बुल्ला साहब103
[16]संत गुलाल साहब104
[17]सन्त सुन्दरदासजी 105-109
[18]परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाईं110-119
[19]भक्त जगन्नाथ दास120
[20]संत शिवनारायण स्वामी121-122
[21]गोस्वामी तुलसीदास123-130
[22]संत सूरदास131-141
[23]संत तुलसी साहब142-143
[24]संत राधास्वामी साहब144-145
[25]भक्तिन मीराबाई146-151
[26]संत कीनाराम152
[27]ब्रह्मानन्द स्वामी153-161
[28]परम संत बाबा देवी साहब162
[29]बाबा धीरजलाल गुप्तजी163
[30]परमहंस ध्यानानंद साहब164
[31]कवि विन्दुजी165-166
[32]कवि विद्यापति167-171
[33]भक्त नरसी मेहता172
[34]संत किंकरजी महाराज173-175
[35]महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज176-178
[36]महर्षि शाही स्वामीजी महाराज179-181
[37]पंडित विष्णुकान्तजी महाराज182-183
[38]गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दासजी महाराज184
[39]श्रीछोटेलाल दासजी185-187
[40]श्रीरघुनन्दन झा जी188-189
[41]स्वामी आशुतोष ‘गुरुस्नेही’190
[42]स्वामी स्वरूपानन्दजी महाराज191
[43]डॉ0 स्वामी गुरु प्रसाद192
[44]भक्त बलदेवनारायण लाल दासजी193-201
[45]भक्त इन्द्रदेव लाल दासजी202-208
[46]भक्तिन स्नेहप्रभा देवी ‘शान्ति’ 209-211

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